सुमिरन टॉनिक - करे मन के दिए जख्मों का शर्तिया इलाज | बढ़ाए आत्मिक शक्ति और बनाए आत्मनिर्भर इंसान | जानिए कैसे:
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कोई भी इन्सान अगर इश्वर का नाम लेता है तो उसका आत्मबल बड़ता चला जाता है, और आत्मबल जिनके अंदर होता है वो लोग हारी हुई बाजी भी जीत जाया करते हैं.
आत्मबल हांसिल करने के लिए लोग जंगलो, पहाड़ो और उजाड़ों में न जाने कितने साल घूमते रहते हैं और भगवान की तलाश करते रहते हैं लेकिन असलियत में हमारे सभी धर्मो का सार (निचोड़) यही है कि चाहे घर-गृहस्थी में रहो या चाहे त्यागी-तपस्वी बनकर रहो, अगर राम का नाम जपोगे सिर्फ तभी ये जालिम मन काबू में आ सकता है वरना ये काबू में नहीं आता.
गुरु जी फरमाते हैं कि पिछले कई सत्संगो में लोगों ने हमसे यह प्रश्न पूछा कि मन और आत्मा की आवाज़ में क्या अंतर है ? आखिरकार कैसे इस बात की पहचान करें कि कौन से विचार मन के हैं और कौन से विचार आत्मा के हैं. इसी बात को स्पष्ट करते हुए 31 मई 2017 की रूहानी मजलिस के दौरान गुरु जी ने बताया कि: हमारे पवित्र धर्मों में ये माना गया है कि मन का मतलब बुरे विचार, बुरे ख्याल, बुरी सोच और नकारात्मक भावना इत्यादि ये सब मन की देन है. दूसरी तरफ असीम पोसिटीविटी किसी इन्सान में जितनी भी आती है वो सब आत्मा के विचार और आत्मा की मुफ्त ताकत हैं. तो अब आप सोचिये कि अगर हर समय आपमें नैगिटीविटी चलती रहती है या आपका मन बदलते मौसम की तरह बार-बार आपके ऊपर हावी रहता है, तो ये इस बात का प्रतीक है कि मन पर काबू पाना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन असम्भव नहीं.
आत्मिक शांति और आत्मिक शक्ति का क्या अर्थ है ?
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आत्मिक शांति वो सुख है और ऐसी जन्नत का एहसास है जो अगर एक बार किसी इन्सान को नसीब हो जाए तो उसकी जन्मो से चलती आ रही अशांति चुटकी में उड़न-छू हो जाती है. इसलिए उस परमानेंट आनन्द को कोई व्यक्ति लिख-बोलकर शब्दों में बयां नहीं कर सकता. अगर हम ये कहें कि समुन्द्र के पानी को कलम की दवात बनाकर और पूरी पृथ्वी को कागज मानकर उस आत्मिक शांति के एहसास का वर्णन करने लगें तो भी वो दवात और कागज कम पड़ जाते हैं. लेकिन ऐसी शांति किसी भी इन्सान को तभी नसीब होती है जब उसका मन उसके काबू में हो जाता है और मन को काबू करने के लिए राम-नाम से बेहतर कोई और दवाई इस दुनिया में नही है. इसलिए जरूरी है कि आप राम का नाम जपो चाहे चलते-बैठके-काम धंधा करते हुए या फिर जब मर्जी, सिर्फ तभी आप मन पर काबू पा सकेंगे, तभी आत्मबल बड़ेगा और तभी दुनिया में जीने के लिए, सहन शक्ति को बढ़ाने वाली आत्म शक्ति आएगी.
राम के नाम का जाप करने के लिए कोई पैसा-चढ़ावा-दिखावा करने की जरुरत नही है. आप चाहे जैसे भी हैं ठीक हैं. अपने विचारों को काबू करो. आप अमीर हैं या गरीब हैं, कपड़े महंगे हैं या सस्ते हैं, आप गोरे हैं या काले हैं चाहे जैसे मर्जी हैं उससे इश्वर को कुछ लेना देना नहीं पर अगर आपकी भावना इश्वर के प्रति सच्ची है और आपके दिल-दिमाग में राम-नाम चलता है तो यकीनन एक दिन आप भगवान की कृपा के पात्र बन जाएँगे और खुशियों के हकदार जरुर हो जाएंगे. तो ये बहुत जरूरी है कि आप राम का नाम जपें, मालिक की भक्ति करें, तभी मालिक की दया-दृष्टि आप पर बरसेगी.
इन्सान-की-इन्सान पर निर्भरता एक अभिशाप है.
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इन्सान को कभी किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होना चाहिए क्योंकि जब इन्सान किसी के सहारे हो जाता है तो यकीनन एक दिन दुःख-परेशानियाँ उसे घेरती हैं क्योंकि पता नहीं कब-कौन आपके विचारों पर असहमति जता दे और हर समय आप दुखी होकर घूमते रहो. बिना वजह आप दुःख मोल ले लेते हो और यही अगर आप राम-नाम या भगवान पर निर्भर होते हो, तो यह हो ही नही सकता कि वो आपको मझधार में अकेला छोड़ दे.
कुम्हार के घड़े की तरह जब इन्सान को बाहर से कर्मो की मार पड़ती है तो 'वो रब' वो दया के सागर अंदर से हाथ देकर आपको बचाए रखता है. कभी भी मन के कहने पर मत चलो क्योंकि जब भी ये मन अपनी आई पर आता है तो ये सब कुछ भुला देता है, सब कुछ खत्म करवा देता है पर इन्सान कभी भी मन को हरा सकता है क्योंकि जब जागो तभी सवेरा; अर्थात जब तक मन की जालिम चाले आपको समझ नहीं आई, तो नहीं आई लेकिन जब समझ में आ गयी तो भगवान का नाम जपते रहो, इश्वर की भक्ति करते रहो तो एक दिन मन काबू में जरुर आ जाएगा. और जब मन काबू में होता है तो इन्सान उजाड़ परिस्थितियों में भी बहारें ढूंढ लेता है लेकिन यही मन जब काबू में नहीं होता तो जन्नत सी बहारें भी उजाड़ बन जाया करती हैं
तो इसलिए सुमिरन करो, मालिक से मालिक को माँगा करो और सबका भला करो, तो मालिक आपका भला भी जरुर करेंगे.
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