बुरे लोगो का बोलबाला है और सही इंसान को लोग पागल समझते हैं, जानिए क्यों >


Saint Dr. MSG

सत्संग मे जब कोई इंसान चलकर आता है तो उसके जन्मो-जन्मो के पाप-कर्म जोकि इंसान की आत्मा पर एक भोज की तरह होते हैं, वो कटते चले जाते हैं। सत्संग का मतलब उस परम पिता परमात्मा को याद करना और करवाना होता है। इंसान जब उस मालिक की याद मे बैठता है तो उसकी सारी परेशानियाँ और सारे गम पंख लगाकर उड़ जाते हैं। मालिक के नाम के अंदर ऐसी ताकत है, ऐसी शक्ति है कि जो भी रब के नाम से जुड़ता है उसके अंदर एक स्फूर्ति, खुशहाली और एक ताजगी पैदा हो जाती है।

बुरे लोगो का बोलबाला है और सही इंसान को लोग मूर्ख समझते हैं


आज का दौर बड़ा ही खुदग़र्ज़ी का दौर है, हर तरफ स्वार्थी लोगो का बोलबाला है, अच्छे इंसानो को लोग मूर्ख समझते हैं और जो अच्छाई करता है या भले काम करता है, उसको लोग ये सोचते हैं कि वो व्यक्ति कहीं-न-कहीं कमजोर होगा, जबकि असलियत मे ये उन लोगो की कमजोर मानसिकता (यानि छोटी सोच) को दर्शाता है। लेकिन पूज्य गुरू जी के अनुसार शूरवीर योद्धा और असली बहादुर लोग सिर्फ वही लोग हैं जो आज की व्यस्त जीवनशैली और कलयुग के इस भयानक दौर मे मानवता भलाई के काम करते हैं। आज हर तरफ इतनी बुराइयाँ हैं कि उनसे बच पाना बड़ा ही मुश्किल है। लोग दिखावा जरूर ऐसा करते हैं कि जैसे अभी-अभी आसमान से टपके हों और ऐसा दिखाते हैं कि उन जैसा भक्त कोई भी नहीं है लेकिन पीर-फकीर के सामने आदमी का माथा साइन-बोर्ड की तरह होता है जिसे देखते ही उसकी असलियत साफ पता लग जाती है।

बुराई के नुमाइंदो को सत्संग मे आकार होश आती है


गुरु जी ने फरमाया कि क्या कभी सब्जी पटाखे की दुकान पर मिलती है?, नहीं। तो कहने का मतलब है कि हर दुकान पर एक साइन-बोर्ड लगा होता है जैसे “करियाना स्टोर” “जनरल स्टोर” “बीज वाली दुकान” “स्प्रे वाली दुकान जोकि ये दर्शाती हैं कि उन दुकानों पर मिलता क्या है। लेकिन सत्संग मे तो हर तरह के अलग-अलग लोग आते हैं जिसमे पटाखे वाले भी होते हैं, साग-सब्जियों वाले भी आते हैं और जहर वाले भी आते हैं लेकिन संतो का सिर्फ एक ही काम होता है कि जो भी उनके पास आए, वे उनकी अंदर की गंदगी को साफ कर दें और उनकी ऐसी दुकान बना दें कि जो कोई भी उनकी दुकान का नाम शब्द पढ़े, वो भी तर जाए यानी उसका भी जीवन सफल हो जाए। तो कहने का भाव यह है कि बुराइयों मे डूबे इन्सानो को केवल सत्संग मे आकर ही होश आती है अर्थात उन्हें अच्छे और बुरे कर्मो के बीच अंतर पता चलता है, लेकिन होश आने के बाद वचनो पर अमल करना बहुत ही बड़ी बात होती है।

जाने और अनजाने मे बहुत फर्क होता है


गुरु जी ने बताया कि जब कई सतसंगी हमे ये कहते है कि गुरु जी हमसे ये गलती जाने-अंजाने मे हो गयी तो हम उनसे ये पूछते हैं कि अनजाने मे गलती हो गयी - तो कोई बात नहीं लेकिन जानकार होते हुए भी गलती होने का क्या मतलब?’ ऐसा तो हो नही सकता कि किसी सत्संगी को ये समझ ना आए कि कौन सा कर्म बुरा है और कौन सा कर्म अच्छा, अरे! सत्संगी ही क्यों, कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसे अच्छाई और बुराई मे फर्क ना पता चलता हो, ये तो वो लोग गप मारते (यानी झूठ बोलते) हैं जो फकीरों के सामने भी अपनी गलती को स्वीकार नहीं करते हैं। किसी घर मे अगर छोटे बच्चे से शरारतें करते हुए कोई काँच का गिलास टूट जाए तो उसे भी पता होता है कि उसने क्या गलती की है। लेकिन संतो के सामने इंसान पारदर्शी गिलास मे पानी की तरह होता है जिसमे गंदगी और सफाई साफ-साफ नज़र आ जाती है। वे लोग जो संतो के सामने झूठ बोलते हैं और सोचते हैं की उन्होने संतो को पागल बना दिया, लेकिन असलियत मे वे लोग खुद को पागल बना रहे होते हैं और खुद को चारो-खाने चित्त करवा लेते हैं। 


कोई ऐसी जगह ढूंढो जहां सिर्फ सच-ही-सच हो



संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सा फरमाते हैं कि इंसान को सच बोलना चाहिए। वैसे तो आज लगभग हर जगह झूठ, ठग्गी और बेईमानी का बोलबाला है लेकिन फिर भी दुनिया मे कम से कम एक जगह ऐसी होती है जहां इंसान को सिर्फ सच्ची बाते ही करनी चाहिए और उस जगह का नाम है “सत्संग - यानी सच्चा संग”। अगर आप सत्संग मे जाकर भी गप मारते हैं तो इसका मतलब है कि आप खुद की जिंदगी को मज़ाक बना रहे हैं क्योंकि संत किसी को गलत नहीं बोलते और न ही किसी के कर्मो का दुनिया के सामने पर्दा उठाते, उन्होने तो एक ही बात कहनी है अच्छा बेटा, जी बेटा’, जी आयां नूँ, जी जाया नूँ लेकिन जो आपने पीर-फकीर के सामने गप मारी है वो एक गुनाह है, क्योंकि पीर-फकीर के सामने जब कोई अपनी गलती मान लेता है तो वो उसे माफी ही नहीं बल्कि पता नहीं कितनी ही नियामते, बरकतें और रहमत उस अल्लाह=मालिक से बख्शवा देते हैं।लेकिन ये तो उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो अपना सच पीर-फकीर के सामने मानता है या नहीं। ये तो इंसान की सोच होती है, जो जैसी इंसान सोच रखता उसका मन उसको वैसा बना देता है और अपने पीर-फकीर वो जैसा मानता है उसका मन उसे वैसा ही दिखाने लगा देता है।


इसलिए उस परम पिता परमात्मा का नाम जपते समय उससे अरदास करके ये मांगा करो कि “हे मालिक जब भी मैं तेरी याद में बैठूँ या जब तेरे किसी पीर-फकीर को मिलूँ और अगर मुझे मौका मिल जाए तुझसे बात करने का तो उस समय मैं सिर्फ सच बोलूँ, अपने गुनाहों से तौबा कर लूँ और तेरे नूरी दर्श से माला-माल हो जाऊँ।



योगदानकर्ताओं का तहदिल से धन्यवाद और साधुवाद


गुरु: संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसान (एम॰एस॰जी॰)
यूट्यूब विडियो का लिंक: https://youtu.be/IhwmO4qUDGI
धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा

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